।। श्री हरिः ।।
शिवलिंग का क्या अर्थ है ?
What does Shivling means and its types?
---प्रेमाचार्य शास्त्री शास्त्रार्थ पंचानन
शिव पुराण, देवी भागवत पुराण आदि के अनुसार लिग शब्द संस्कृत के दो शब्दों के योग से बना है-- लीन और ग ( गम् धातु ) । इसका अभिप्राय है कि जो वस्तु लीन अर्थात् सर्वत्र व्याप्त है उसको ग अर्थात् ग्यान प्रदान कराने वाले माध्यम को लिंग कहा जाता है । लोक भाषा में लिंग शब्द का अर्थ है -- चिन्ह, लक्षण ,पहचान या परिभाषा आदि । जैसे--
लीनार्थगमकं चिन्हं लिंग मित्यभिधीयते । ( देवी भागवत )
इस विवेचन से समझ लेना चाहिये कि लिंग शब्द को केवल मूत्रेन्द्रिय मानकर भ्रमित होना नासमझी है ।
भगवान् शिव गोल आकार वाले ब्रह्माण्ड में लीन ( व्याप्त ) हैंं अतः उसका सूचक प्रतीक भी गोलाकार ही होता है । व्याकरणानुसार जैसे हीन और ताल को मिला देने पर हिन्ताल शब्द बनता है वैसे ही लीन और ग को मिलाने पर निपातनात् लिंग शब्द की सिद्धि हो जाती है ।
भगवान् शिव की भान्ति भगवान् श्रीमन्नारायण भी उभय स्वरूपों मैं पूजे.जाते हैं । शंख चक्र गदा एवं पद्म धारी सगुण साकार नारायण हैं और शालिग्राम के रूप में वे निर्गुण निराकार कहलाते हैं ।
शालि ग्राम शब्द का अर्थ है तेतीस कोटि देवताओं का एक नाम । अर्थात् व्यष्टि रूप से देवता पृथक् पृथक् नाम वाले हैं, जैसे अग्नि, वरुण , वायु आदि, परन्तु समस्त देवताओं का समष्टि अर्थात् सामूहिक नाम है-- शालिग्राम ।
इसी प्रकार भगवान् की बनाई हुई सृष्टि भी साकार निराकार तथा जड़.चेतन भेद से दो रूपों में विभक्त है । हम शरीर की दृष्टि से साकार हैं, जड़ हैं और आत्मा की दृष्टि से निराकार हैं चेतन हैं । यह नियम प्रकृति में सर्वत्र दृष्टि गोचर होता है । केवल मनुष्यों.में ही नहीं, पशु , पक्षी , कीट,जलचर , स्थलचर , सरीसृप आदि सभी में परिलक्षित हो रहा है ।
भारत में शिवलिंग मुख्यतया तीन प्रकार से पूजे.जाते हैं --
ज्योतिर्लिंग , स्वयंभू लिंग और नर्मदेश्वर लिंग ।
सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, घुश्मेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर , विश्वेश्वर, वैद्यनाथ , केदारनाथ , ओंकारेश्वर , रामेश्वरम् बैजनाथ और चिताभूमीश्वर नामों से १२ (12 ) ज्योतिर्लिंग हैं। उक्त.नामों में कुछ अन्तर भी संभव है । ये अनादि काल से अर्चित हो रहे हैं ।
इसी प्रकार भारत के विभिन्न स्थानों पर १०८(108) संख्या में स्वयं भू लिंगों की पूजा होती है । जिनके संस्थापकों का कोई अता पता नहीं है , वे स्वयं भू कहलाते हैं।
इनके अतिरिक्त सर्वाधिक संख्या में नर्मदेश्वर लिंग है जो अधिकांश रूप से मन्दिरोँ में स्थापित होते हैं ।
प्रायः कहा जाता है कि शिवलिंग पर चढाया हुआ प्रसाद नहीं खाना चाहिए । ऐसा सोचना शतप्रतिशत सही नहीं है , क्योंकि यह शास्त्र सम्मत नहीं है । नर्मदेश्वर लिंगों पर चढाया गया प्रसाद तो बिना किसी ऊहापोह के खाया जा सकता है । केवल ज्योतिर्लिंग और स्वयंभू लिंग का लिंग स्पृष्ट अर्थात् पिंडी पर चढा या गया प्रसाद ग्रहण नहीं करना चाहिये । यदि लिंगस्पृष्ट नहीं है, केवल सामने रख कर भोग लगाया गया है तो वह प्रसाद लेने में कोई बाधा नहीं है ।
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